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शायरी

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1. मेरे सभी रिश्तेदारों को ख़ैरियत पूछी नहीं कभी तुमने, तो हम कहाँ से बे-ख़बर हो गए? फ़रियाद सुनी नहीं कभी तुमने, तो हम कब से हमसफ़र हो गए? नज़रों में रखा ही नहीं कभी, तो हम कैसे सताया कर गए? जब तुमने कभी अपनाया ही नहीं हमें, तो “हम” कहाँ से पराया हो गए?  2. To... ummm... someone आंसुओं की स्याही से तेरी याद की लकीरें बिखर गईं, ख़ामोश लम्हों में हर आह दबी रह गई। तुझे अपनी दहलीज़ पर देख वो ख़ुशी मेरी, तेरी मुस्कराहट की मिठास, वो शबनमी रोशनी मेरी, अब तो तेरे ख़्वाबों की गलियों में, हर राह धुंधली रह गई। तेरे बिना मेरी वीरानी, हर साँस में इक ज़ख़्म सा अब मेरी तन्हाई की बुनियाद बन कर रह गई। जो थी कभी तेरी बेबाक हंसी - आज बस याद बनकर रह गई। 3. For mysellf: दुनिया की भीड़ में पहचान बनाने चला था, हर निगाह में छुपा दास्तान समझने चला था। ढूंढ़ने निकला था ज़माने को, मगर हर रास्ता वीराना लगने लगा था। पता ही नहीं चला कब खो दिया खुद को, अब तो आइनों में अपना अक्स तक बेगाना लगने लगा था। 4. For, well, no one... No one at all! सुबह की शुरुआत होती थी उनकी यादों से, रातें कटती थीं उनकी बातों से। अब तो द...

सरगोशियाँ अलीशान की

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    कैसे अलीशान की एक आकस्मिक यात्रा ने इसे एक अविस्मरणीय रोमांच में बदल दिया। एक रविवार की खूबसूरत सुबह, मैं ताओयुआन में ठंडी और धूप भरी सुबह की आलसी गोद में जागा, थोड़ी देर से उठने के कारण। वो सुबहें होती हैं न, जो धीरे-धीरे कानों में फुसफुसाती हैं, "उठो! आज कुछ रोमांचक करो!" और मैं अपनी आरामदायक रजाई में लिपटा, सोच रहा था कि इस सप्ताहांत पर क्या किया जाए। तभी एक ख्याल आया: अलीशान! अरे हाँ, वही माउंट अली, जिसकी खूबसूरती का ख्वाब मैं कबसे देख रहा था। लेकिन मेरी काम की दीवानगी हमेशा मुझे पीछे खींचती रही, बहानों के साथ, "काम बहुत ज़्यादा है," या "कभी योजना बना लूंगा।” वही पुरानी कहानी। पर आज का दिन कुछ अलग था—इस सुबह में एक अलग सी अनुभूति थी, जैसे कोई अदृश्य ताकत मुझे बस जाने के लिए प्रेरित कर रही हो। फिर अचानक से हक़ीक़त ने दस्तक दी: सुबह के 10:30 बज चुके थे। माथा ठोक लेने वाली बात थी। अलीशान की यात्रा की कोई योजना नहीं थी, और ये कोई ऐसा सफर नहीं था कि बस उठो और चल दो। अलीशान ताओयुआन से चार-पांच घंटे की दूरी पर बसा है, च्याई में। सफर की मुश्किलें सामने थीं: बुल...